कृषि विज्ञान केंद्रों के कर्मचारियों ने मांगों को लेकर किया शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन।

भारत की कृषि पर निर्भरता

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी लगभग 60 प्रतिशत से अधिक आबादी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। कृषि को उन्नत बनाने और किसानों को तकनीकी ज्ञान प्रदान करने के उद्देश्य से 1974 में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत पहला कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) पांडिचेरी में स्थापित किया गया। आज देशभर में कुल 731 कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं, जिनमें से कुछ बड़े जिलों में दो-दो केंद्र हैं।



कृषि विज्ञान केंद्रों का संचालन और वित्त पोषण

इन केंद्रों का 100 प्रतिशत वित्त पोषण भारत सरकार द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के माध्यम से किया जाता है। इनमें से केवल 9 प्रतिशत (66 केंद्र) आईसीएआर के अंतर्गत संचालित हैं, जबकि 91 प्रतिशत (665 केंद्र) राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और गैर सरकारी संगठनों के तहत कार्यरत हैं।  

हालांकि, सभी कृषि विज्ञान केंद्रों का मिशन और कार्य समान है, लेकिन कर्मचारियों को मिलने वाले लाभों में बड़ा अंतर है। आईसीएआर द्वारा संचालित केंद्रों के कर्मचारियों को समय पर प्रमोशन, पेंशन और ग्रैच्युटी जैसी सुविधाएं दी जाती हैं, जबकि गैर-आईसीएआर केंद्रों के कर्मचारियों को इन सुविधाओं से वंचित रखा जाता है।

भविष्य को लेकर कर्मचारियों में असुरक्षा  

गैर-आईसीएआर केंद्रों के कर्मचारियों को समय-समय पर परिषद की ओर से पत्र लिखकर मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। इस कारण इन केंद्रों के वैज्ञानिकों और कर्मचारियों में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। कर्मचारियों का कहना है कि समान कार्य के लिए समान वेतन के नियम का उल्लंघन संविधान सम्मत नहीं है।  

शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन

इसी असमानता के खिलाफ अखिल भारतीय कृषि विज्ञान केंद्र एवं एक्रिप फोरम के आवाहन पर देशभर के कृषि विज्ञान केंद्रों के कर्मचारी शांतिपूर्ण ढंग से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। सिद्धार्थनगर जिले के सोहना केंद्र में वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष के नेतृत्व में गुरुवार को शांतिपूर्ण धरना दिया गया।  

कर्मचारियों ने सरकार से आग्रह किया कि समान कार्य के लिए समान वेतन और अन्य सुविधाओं की गारंटी सुनिश्चित की जाए, ताकि केंद्रों के वैज्ञानिक और कर्मचारी बिना किसी असुरक्षा के अपने कार्य में योगदान दे सकें।

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